प्रेम
प्रेम दुर्लभ नहीं प्रेम तो तपस्या है ।आप लिखिए और प्रेम में खो जाइये । प्रेम राधा है प्रेम कृष्ण है ,प्रेम ही तो सम्पूर्ण विश्व है ।प्रेम न हो तो दुनिया एक अंगार के समान होगी ।प्रेम से हम हैं प्रेम ही हमारी पहचान है ।जलते हुए दिलों का मरहम है ,रोते हुए आँसूओं का विश्राम है ।प्रेम है तो इंसान है प्रेम के बिना सृष्टि ही सुनसान है ।कौन कहता है प्रेम दुख देता है प्रेम तो सबको जीवन देता है ।हमारी इच्छाएँ ही दुख का कारण है वरना प्रेम तो विधाता की पहचान है ।प्रेम नश्वर है ,प्रेम पावन है ।प्रेम को न कोई बंधन बाँध पाया न ही प्रेम को कोई जान पाया है ।प्रेम वो पुष्प है जो रोते हुए को भी हँसा दे,प्रेम वो पत्र है जो सोते हुए को जगा दे । प्रेम की न कोई परिभाषा है न प्रेम का कोई अंत ।प्रेम तो बस प्रेम है ,प्रेम बंधन कैसे हो सकता है ?निराशा में व्यक्ति के जीने की एकमात्र आशा प्रेम ही तो है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़