कभी मैंने जो उनकी याद में दीपक जलाये हैं |
सुनहरी सांझ में पंछी यूं घर को लौट आये हैं ||
नहीं ये ओस की बूँदें हैं आंसू गुल के गालों पे |
किसी ने खत मेरे शायद उन्हें पढ़कर सुनाये हैं ||
दुआ में झोलियाँ भर भर जो औरों के लिए मांगे |
ख़ुशी ने उसके आंगन में आकर गीत गाये हैं ||
बहके हैं बहारों के हसीं मौसम फ़िज़ाओं में |
किसी के खाब पलकों ने मेरी जब जब सजाये हैं ||
कभी करते नहीं परवाह बशर जो रिसते छालों की |
वही अम्बर के तारों को जमीं पे तोड़ लाये हैं ||
पुराने दोस्त देखे हैं खड़े दुश्मन के पाले में |
शोहरत की बुलंदी के करिश्मे आजमाए हैं ||
— अशोक दर्द