गीत/नवगीत

दोहा गीत “बेटो जैसा प्यार”

बेटी से आबाद हैं, सबके घर-परिवार।
बेटो जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।।

चाहे कोई वार हो, कोई हो तारीख।
दिवस सभी देते हमें, कदम-कदम पर सीख।।
जगदम्बा के रूप में, जो लेती अवतार।
उस बेटी से कीजिए, बेटो जैसा प्यार।।
बेटी रत्न अमोल है, कुदरत का उपहार।
बेटो जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।१।

दुनिया में दम तोड़ता, मानवता का वेद।
बेटा-बेटी में बहुत, जननी करती भेद।।
बेटा-बेटी के लिए, हों समता के भाव।
मिल-जुलकर मझधार से, पार लगाओ नाव।।
बेटी रत्न अमोल है, कुदरत का उपहार।
बेटो जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।२।

पुरुषप्रधान समाज में, नारी का अपकर्ष।
अबला नारी का भला, कैसे हो उत्कर्ष।।
कृष्णपक्ष की अष्टमी, और कार्तिक मास।
जिसमें पुत्रों के लिए, होते हैं उपवास।।
ऐसे रीति-रिवाज को, बार-बार धिक्कार।
बेटो जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।३।

घर में अगर न गूँजती, बिटिया की किलकार।
माता-पुत्री-बहन का, कैसे मिलता प्यार।।
लालन-पालन में करो, पुत्र समान दुलार।
बेटी का घर-द्वार में, है समान अधिकार।
लालन-पालन में करो, पुत्र समान दुलार।
बेटो जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।४।

जिस घर में बेटी रहे, समझो वे हरिधाम।
दोनों कुल का बेटियाँ, करतीं ऊँचा नाम।।
कुलदीपक की खान को, देते क्यों हो दंश।
बिना बेटियों के नहीं, चल पायेगा वंश।।
अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।
बेटो जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।५।

लुटे नहीं अब देश में, माँ-बहनों की लाज।
बेटी को शिक्षित करो, उन्नत करो समाज।।
एक पर्व ऐसा रचो, जो हो पुत्री पर्व।
व्रत-पूजन के साथ में, करो स्वयं पर गर्व।।
सेवा करने में कभी, सुता न माने हार।
बेटो जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।६।

माता बनकर बेटियाँ, देतीं जग को ज्ञान।
शिक्षित माता हों अगर, शिक्षित हों सन्तान।।
संविधान में कीजिए, अब ऐसे बदलाव।
माँ-बहनों के साथ मैं, बुरा न हो बर्ताव।।
क्यों पुत्रों की चाह में, रहे पुत्रियाँ मार।
बेटो जैसे दीजिए, बेटी को अधिकार।७।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है