गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खूब  सराहूँ  अज़मत को।
अल्ला  तेरी   रहमत  को।
चलनी  भीतर   दूध   दुहें,
कोस रहे  हैं  किस्मत को।
सच को सच  ही कहता है,
दाद  तेरी   है  हिम्मत को।
अच्छी  दुल्हन  चाहें  सब,
ढूंढ  रहे  पर   दौलत  को।
फाँसी    दो   चौराहे   पर,
लूट  रहे  जो  अस्मत को।
सूरत   पर  सब   मरते  हैं,
कौन   सराहे   सीरत  को।
ख़्वाब फ़क़ततुम देखोमत,
समझो  यार हक़ीक़त को।
पास किसी  के सौ  कमरे,
तरसे  कोई  इक छत  को।
माँकीजमकर खिदमतकर,
क़दमों  में  पा  जन्नत  को।
नफ़रत  नफ़रत   खेल रहे,
समझे  कौन  मुहब्बत को।
अम्न सुकूं  से  रहना  गर,
मत दो  तूल अदावत  को।
हमीद कानपुरी

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - [email protected] मो. 9795772415