ग़ज़ल
व्यापार की तरह कभी त्योहार की तरह
प्यार अब होता है कहाँ प्यार की तरह
घुल गया हवाओं में ज़हर कुछ इस कदर
पेश आते हैं हमसाए भी अगयार की तरह
फिर पास से निकल गया हवा की तरह वो
हम हाथ ही मलते रहे हर बार की तरह
कीमत लगाने लगते हैं हर एक चीज़ की
किसी नए – नए वो साहूकार की तरह
इस पार हैं मजबूरियां उस पार ख्वाहिशें
दुनिया खड़ी है बीच में दीवार की तरह
— भरत मल्होत्रा