गज़ल
बड़ी शिल्पकार सी लगती हैं,इवारतों की बयानियाँ
मुझे इश्तहार सी लगती है, ये मुहब्बतों की कहनियां।
पढ़े हैं कईं किस्से कितनी ही बहुत सारी कहानियाँ
कुछ दोस्तों और कुछ बुजुर्गों की अदब पाई जुबानियां।
वो पीर-पैगम्बर की मुर्शिद चेला सी जानी फरमानियाँ
सज़दा करें वजूद महबूब का , ये इश्क पाई दिवानियाँ|
जो सदा कहों वो अमल करो जो सुना नहीं मिले करो
बीते हुये वक्त की सुनी अनुभवी रिवायतों की नादानियां।
बनता तभी इतिहास जान दे वतन सुरक्षा हेतू जवानियां
ये तब मुमकिन है जब रियाया को ख़ुदा की मेहरबानियाँ।
स्वरचित -रेखा मोहन २४ /९/१९