ग़ज़ल
ज़हनो दिल को संवारती आँखें।
आरती सी उतारती आँखें।
अब भी लगतीं पुकारती आँखें।
तेरी दिलकश शरारती आँखें।
देख उनको सुकून मिलता है,
मैल दिल का बुहारती आँखें।
एक मुद्दत गुज़र गयी लेकिन,
याद अब तक पुकारती आँखें।
भूल सकता नहीं हमीद उन्हे,
एकटक वो निहारती आँखें।
— हमीद कानपुरी