कविता

जैसा तू चाहे

ऊंचे-ऊंचे पर्वत की गोद से
निकलता भुवन भास्कर
सुनहरी उर्मियां छिटका कर
बर्फीली पहाड़ों पर
ऐसे चमकतीं,जैसे
चांदी की चादर बिछी हो
पत्ते-पत्ते पर ओस की बूंदें
मानों हरे मखमल पर मोती
कल-कल, जल-थल करती
पहाड़ी नदियों की जलधारा
नयनों को सुख पहूंचाती
सुनहरे भोर के आलम में
परिंदों का खुश होना
अपने आशियानों से निकलकर जाना
चहचहाट उनकी कानों में रस घोलती ‌है
मंदिरों की घंटियों और भजनों से तृप्त
होता मन,आह्यलादित होकर बोल
उठता है–

सृष्टि कर्ता तूने कैसी रचना रची है?

जिसमें सुख शांति और दु:व्याप्त है
सत्य भी है , सुंदर है,कल्याणकारी है
पर, मैं याद दिला दूं यहां विभस्तता का
ताण्डव नृत्य भी व्याप्त है
आंखें मूंदकर कहां बैठा है तू।

— मंजु लता

डॉ. मंजु लता Noida

मैं इलाहाबाद में रहती हूं।मेरी शिक्षा पटना विश्वविद्यालय से तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। इतिहास, समाजशास्त्र,एवं शिक्षा शास्त्र में परास्नातक और शिक्षा शास्त्र में डाक्ट्रेट भी किया है।कुछ वर्षों तक डिग्री कालेजों में अध्यापन भी किया। साहित्य में रूचि हमेशा से रही है। प्रारम्भिक वर्षों में काशवाणी,पटना से कहानी बोला करती थी ।छिट फुट, यदा कदा मैगज़ीन में कहानी प्रकाशित होती रही। काफी समय गुजर गया।बीच में लेखन कार्य अवरूद्ध रहा।इन दिनों मैं विभिन्न सामाजिक- साहित्यिक समूहों से जुड़ी हूं। मनरभ एन.जी.ओ. इलाहाबाद की अध्यक्षा हूं। मालवीय रोड, जार्ज टाऊन प्रयागराज आजकल नोयडा में रहती हैं।