रोमिला थापर का ‘अद्भुत’ इतिहास ज्ञान: वामपंथी मानसिकता का प्रत्यक्ष दर्शन
कथित इतिहासकार रोमिला थापर का सोशल मीडिया पर थापर का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें उनके इतिहास ज्ञान की पोल खुल रही है। रोमिला थापर का यह वीडियो 2010 में इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर (आईडीआरसी) के अध्यक्ष डेविड एम मैलोन से बातचीत के दौरान का है।
कार्यक्रम के दौरान रोमिला थापर से पूछा गया कि इतिहास में अशोक के बारे में ज्यादा कुछ दर्ज क्यों नहीं है, तो उन्होंने इसका सारा दोष ब्राह्मणों पर मढ़ दिया। उन्होंने कहा कि पुराणों सहित अन्य साहित्यों में ब्राह्मणों ने अशोक का मज़ाक उड़ाया और केवल बौद्धिक साहित्य में ही उनके बारे में लिखा गया। इस दौरान महाभारत की एक घटना का जिक्र भी किया, जब भीषण युद्ध के बाद युधिष्ठिर को कुरु साम्राज्य का सम्राट बनाया जाना था और उन्होंने सिंहासन पर बैठने से मना कर दिया। युधिष्ठिर को राजा बनने के लिए कहा गया तब उन्होंने कहा कि वह राजसुख का त्याग कर के कहीं और जा रहे हैं। रोमिला थापर का कहना है कि ‘राजसत्ता के त्याग’ का यह पूरा प्रकरण बौद्ध धर्मों का एक अहम हिस्सा रहा है और बौद्ध सिद्धांतों से प्रेरित है। रोमिला थापर के अनुसार, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राजकाज के त्याग की युधिष्ठिर की भावना के पीछे अशोक की छवि थी। अर्थात, रोमिला थापर कहती हैं कि युधिष्ठिर ने सम्राट अशोक के सिद्धांतों से प्रेरित होकर राजकाज के त्याग की इच्छा जताई थी।
पश्चिमी इतिहासकारों ने जब भारतीय प्राचीन इतिहास के दर्शन किये तो उन्हें समझ में आ गया कि अगर प्राचीन वैदिक संस्कृति से संसार को परिचित कराया गया तो संसार में ईसाई मत का प्रचार असंभव हो जायेगा। वैदिक संस्कृति के उच्च ज्ञान और आचार के समक्ष उनका मत कहीं नहीं ठहरता। इसलिए उन्होंने इतिहास में एक पात्र को खोजा जिसे वह एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर सके और उनकी रणनीति भी सफल हो। वह पात्र उन्हें अशोक के रूप में मिला। जो बौद्ध धर्मी था। जिसकी वेदों में अनास्था थी। जिसकी अति अहिंसा कि नीति के चलते भारत भूमि से क्षत्रिय धर्म का लोप हुआ एवं देश विदेशी आक्रांताओं के समक्ष हारता गया। जिसके राजकाल के कारण कालांतर में मौर्या साम्राज्य छिन्न-भिन्न और कंगाल हो गया। विडंबना देखिये कि इन इतिहासकारों ने मौर्य साम्राज्य के ढहते किले को दोबारा से सुदृढ़ करने वाले, अश्वमेधयज्ञ कर भारतभूमि को एक साम्राज्य के रूप में स्थापित करने वाले पुष्यमित्र शुंग को नकारात्मक चरित्र के रूप में लिखा हैं। इन लेखकों की इस मुहीम को आज़ादी के पश्चात कम्युनिस्ट इतिहासकारों जैसे रोमिला थापर , इरफ़ान हबीब आदि ने खूब प्रोत्साहन दिया। जवाहरलाल नेहरू जी की पुस्तक भारत एक खोज में हमें यह मानसिकता स्पष्ट रूप से प्रदर्शित होती हैं। इस मुहीम के चलते स्वपन में भी ऐसे इतिहासकारों को अशोक ही दिखता हैं। इसी का परिणाम यह वीडियो है। जिसमें रोमिला थापर ने युधिष्ठिर का प्रेरणास्रोत्र अशोक को बता दिया।
-प्रचलित मान्यता के अनुसार महाभारत का काल आज से 5000 वर्ष पूर्व है जबकि अशोक का काल 2000 वर्ष पूर्व हैं। इस तथ्य की अनदेखी करते हुए रोमिला थापर का यह बयान कि अशोक से युधिष्ठिर ने प्रेरणा ली हास्यपद और मानसिक खोखलापन को दर्शाता हैं।
– वेदों में त्याग की शिक्षा अनेक मन्त्रों में बताई गई है। यजुर्वेद और ईशोपनिषद के प्रसिद्द मन्त्र को पढ़े। ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् । तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृथ: कस्यस्विद् थनम्। अर्थ— यह सब कुछ ईश्वर से व्याप्त है। इसलिए त्यागपूर्वक भोग करें। लालच न करें। धन किसी का नहीं है। श्री राम से लेकर श्री कृष्ण के युग में वेदों की शिक्षाओं का प्रचार था। ऐसे में युधिष्ठिर ने त्याग भावना को वेदों से जाना। यह कहते हुए वामपंथियों को शर्म आती हैं। क्यूंकि इससे वेदों की महिमा का प्रचार होगा।
– पतंजलि के योग दर्शन में त्याग और अपरिग्रह का सन्देश स्पष्ट दिया गया है। त्याग का अर्थ है- स्वाधिकार से मुक्त कर देना और अपरिग्रह का अर्थ है- आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना। वैदिक विचारधारा में High Thinking Plain Living अर्थात उच्च विचार को प्राथमिकता दी जाती है। यहाँ पर कोई किसी के अधिकारों का दमन नहीं करता। किसी के सत्ता का अतिक्रमण नहीं करता। जो यह नियम तोड़ता था जैसे रावण, बाली, दुर्योधन, जरासंध आदि उन्हें आर्य राजाओं ने यथोचित दंड दिया। यह कर्तव्यपालन किसी वामपंथी को नहीं दिखेगा क्यूंकि यह वैदिक साम्यवाद हैं। इसे स्वीकार किया तो मार्क का काल्पनिक और अव्यवहारिक साम्यवाद का किला ढह जायेगा।
– महाभारत से बहुत काल पहले रामायण में श्री राम ने पिता द्वारा वनवास देते समय राजपथ छोड़कर वन प्रस्थान किया था। बाली वध सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बनाया। लंका पर विजय के पश्चात भी श्री राम ने स्वयं को सिंहासन पर नहीं बैठाया। अपितु विभीषण को बैठाया। क्या युधिष्ठिर को श्री राम जी से प्रेरणा नहीं मिल सकती? थापर जैसे वामपंथी कभी श्री राम से प्रेरणा लेने को नहीं कहेंगे क्यूंकि उनके लिए या तो श्री राम मिथक है अथवा वो केवल शम्बूक के हत्यारे हैं अथवा सीता को वन जाने का उपदेश देने के कारण नारी अधिकारों का दमन करने वाले हैं। वामपंथियों का आदर्श तो दुराचारी/ व्यभिचारी रावण है क्यूंकि उसने अपनी बहन शूर्पनखा के उकसाने पर सीता का हरण कर आदर्श भाई होना सिद्ध किया था।
यह कुछ उदहारण हमने वामपंथियों की सोच को उजागर करने के लिए दिए हैं। अब समय आ गया है कि देश को वामपंथियों के छदम इतिहास से मुक्त करवाया जाये। उन्हें सत्य इतिहास और वेदों पर आधारित शिक्षा प्रदान की जाये।
— डॉ विवेक आर्य