एक और सूरज
सदियों पहले टकराए ग्रह
कहते हैं उससे धरती बनी !
“आग का गोला” थी तब यह,
फिर धीरे-धीरे शाँत हुई !!
जल, वायु और हरियाली से
फिर इसमें जीवन उभरा !
विकास हुआ, जीवन संवरा,
विज्ञान से जीवन आगे बढ़ा !!
फिर दौर विकास का ऐसा चला,
प्रकृति पर शुरु हुआ अत्याचार !
बाढ़ कहीं तो सूखा कहीं,
धरती पर मच गया हाहाकार !!
इस विकास की अंधी आंधी में,
हम जीवन जीना भूल गए !
नई मंजिलें पाने के लिए,
प्रकृति को ही निगल गए !!
ऐसा ही रहा तो जल्दी ही धरती,
आग का गोला बन जाएगी !
जो सूरज का हिस्सा रही थी कभी,
खुद ही सूरज बन जाएगी !!
अंजु गुप्ता