‘प्यार का नगमा’
लता मंगेशकर और मुकेश द्वारा गाया हुआ ‘शोर’ फिल्म का गाना ‘इक प्यार का नगमा है’ गाते-गाते रानू मंडल तो स्टेशन कलाकार से स्टेज कलाकार हो गई, लेकिन मनीषा तो खुद ‘प्यार का नगमा’ हो गई, ठीक उसी तरह जैसे कबीरदास की लाली-
”लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल,
लाली देखन मैं चली, मैं भी हो गई लाल.”
मनीषा ने ऑस्ट्रेलिया के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में एक कलाकार द्वारा माउथ ऑर्गन पर बजाए हुए गाने ‘इक प्यार का नगमा है’ पर बहुत भावपूर्ण नृत्य किया. यह मात्र नृत्य नहीं था, मनीषा के मन की गहराई से निकला हुआ संवेदनाओं का सागर था. धीरे-धीरे भाव से सराबोर हो थिरकती हुई मनीषा जब कार्यम्रम समाप्त होने के बाद हॉल से बाहर निकली, तो स्टिक के सहारे धीरे-धीरे चल रही थी. यह देखकर मेरा हैरान होना स्वाभाविक ही था.
”आपने बहुत भावपूर्ण डांस किया.” जल्दी-जल्दी डग बढ़ाते हुए मैं उसकी सराहना किए बिना नहीं रह सकी.
”मैं ऑस्ट्रेलिया में ही पली-बढ़ी और लिखी-पढ़ी हूं. हमारी लव मैरिज थी. हम साथ-साथ स्कूल-कॉलेज में पढ़े थे. यह गाना हम दोनों की जान था. जब से मेरी जान मुझसे जुदा हुई है, यह गीत ही मेरी जान बना हुआ है. मैं ठीक से चल भी नहीं पाती हूं, पर जब भी इस ट्रैक को सुनती हूं, मेरे पांव खुद-ब-खुद थिरकने लगते हैं. ”
मनीषा अपनी ही रौ में बोलती चली गई, मानो बहुत दिनों बाद किसी ने उसकी दुखती रग छेड़ दी हो.
उसके तनिक विराम लेते ही उसकी दुखती रग को और न दुखने देने के लिए मैं आगे बढ़ गई, लेकिन तब से मनीषा मुझे खुद ‘प्यार का नगमा’ लगने लगी है.
सच्चे प्यार के अहसास की बात ही अलग है. प्यार में फूल भी प्यार के जलते हुए दीप लगते हैं. पहले दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम में मनीषा काली ड्रेस में आई थी, दूसरे दिन सफेद ड्रेस में. उस दिन वह स्टिक नहीं, व्हील चेयर लेकर आई थी. उसका डांस तारीफेकाबिल है. गीत भावपूर्ण हो या हंसी-खुशी का, मनीषा का भावपूर्ण नृत्य मनोहारी होता है.