हम सुधरने की कोशिश करेंगे
अभी-अभी गौरव भाई का एक सुविचार आया-
”ईश्वर कण-कण में विद्यमान है,
यह तब तक प्रमाणित नहीं किया जा सकता,
जब तक हम अपने अंतःकरण में,
ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर लेते!!”
उनका यह सुविचार हमें सुदूर अतीत में एक लेखक विनोद के पास ले गया.
हम जब भी कोई काम करते हैं या कुछ लिखते हैं, हमारा प्रयत्न होता है कि वह त्रुटि रहित हो. विनोद ने एक लघुकथा लिखी. विनोद को शायद त्रुटिरहित लिखने की शिक्षा नहीं मिली थी या अपने जिद्दी स्वभाव के कारण सुधरने की कोशिश न करते हुए वह निरंतर त्रुटियां करता जा रहा था. वह अपने लेखन में चिड़चिड़ा को चिङचिङा, सुधीर को सूधीर, पड़ती को पङती, आफत को आपत, पीढ़ी को पीढी आदि लिखता चला आ रहा था.
उसकी कथा पर सार्थक कथा होने की एक प्रतिक्रिया आई, विनोद ने प्रशंसा से फूलकर बड़ा-सा भाषण झाड़ दिया.
दूसरी प्रतिक्रिया में विनम्रतापूर्वक छोटा-सा सुझाव भी था- ”बढ़िया संदेश देती और जागरुक करती रचना चित्र पर. बातचीत इनवर्टेड कोमा में लिखिए, बधाई इस रचना के लिए.”
विनोद ने फिर एक बड़ा-सा भाषण झाड़ दिया- ”व्याकरण बेशक जरुरी है,लेकिन कहन अधिक महत्वपूर्ण, ऐसा मैरा विचार है. पहले भी यह सुझाव मिल चुका है, लेकिन मैरा सुभाव हमेशा लीक से हट कर कुछ करने का है?”
उत्तर में फिर इतनी त्रुटियां! पहले भी यह सुझाव मिल चुकने के बावजूद जो अपनी त्रुटियों को स्वीकार नहीं करेगा, उसका सुधरना मुश्किल है.
सुधरने के लिए त्रुटियों को स्वीकार करना अनिवार्य है. ठीक उसी प्रकार जैसे ”ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करने से ही विश्वास होगा कि ईश्वर कण-कण में विद्यमान है.”
सुधरने के लिए कहना, मानना और अमल करना होगा- ”हम सुधरने की कोशिश करेंगे.”
इस ब्लॉग को भी पढ़ें-
रोड शो-5: बात हिंदी की शुद्ध वर्तनी और अन्य पहलुओं की
पीएम मोदी से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं, प्रेरणा ले सकते हैं. मोदी जी छोटी-से-छोटी बात पर गौर फरमाते हैं-
”आईआईटी मद्रास में कैमरे पर पीएम मोदी की चुटकी, ‘कौन ध्यान दे रहा… संसद में भी हो प्रयोग’
आईआईटी चेन्नै में पीएम मोदी ने छात्रों को आसंबोधित किया और इस दौरान कैमरे को लेकर किए इनोवेशन पर चुटकी ली। उन्होंने कहा कि युवा छात्रों ने कैमरे को लेकर कुछ प्रयोग किए हैं, जिससे कौन कितना ध्यान दे रहा है यह पता चलेगा। पीएम ने कहा कि ऐसा ही प्रयोग संसद में हो, इसकी मैं कोशिश करूंगा।”