कविता
उसकी आँखों मे कुछ ऐसी मदहोशी थी,
हमने मयकदे जाना ही छोड़ दिया,
जाम आँखों से पिलाती रही वो,
हमने मय से मुँह मोड़ लिया।
शराब का खुमार तो कुछ पल में
उतर ही जाता है,
पर उसकी हर अदा का खुमार उतर नही पाता है,
दोस्तों की महफ़िल भी अब फीकी लगती है मुझे,
मैंने हर महफ़िल में जाना छोड़ दिया।
वो कहते है उनकी हर अदा में
मासूमियत है,
मैं कहता हूँ उसके हर अंदाज में
गजब की रुमानियत है,
कमबख्त इश्क़ भी करते है और
मुकर भी जाते है,
उनकी इसी अदा ने हमारा दिल तोड़ दिया।
अब उसके बगैर जिंदगी कैसे कटेगी “सपना”,
उसकी इबादत के चलते, हमने खुदा को सज़दा करना छोड़ दिया।
✍🏻 सपना परिहार