ऐसी कृपा करो तुम हे प्रभुवर !
मन में हो उदासी तो ,खुशियों के दीप नहीं जलते
हो पूनम की रात, तो अंधकार नहीं रुकते
आज धरा की चाहत हैं, मेहनत और संघर्षों की
हर मानव में दृश्य दिखें, मानवता के माला की
ऐसी कृपा करों तुम हें! प्रभुवर ।
उड़ जाए खग के जैंसें, मानव के अहंकार
राग द्वेष सब दूर उड़े, जैसें हो कोई पवन बहार
हर बाला विदुषी बन सोचे, जैसें माॅ॑ वीणा की झंकार
हर निर्बल को सबल बनाएं, ऐसे बहें करुणा की धार
सब समुद्र के जैसें धैर्यं धरें, ऐसी करो कृपा तुम हें! प्रभुवर।
आधार किसी का ना लुट जाए, भाग्य किसी का फूट जाए
कोई भी स्त्री बांझ न हो, किसी की ममता अनाथ ना हो
किसी स्त्री में दामन दाग न हो, कोई शिशु न मचले दूध बिना
कोई पुरुष रहे न प्रेम बिना, किसी स्त्री का श्रृंगार न छूटे
किसी नयन में सरयू तट के जैंसा नीर न हो ऐसी कृपा करों तुम हें! प्रभूवर।।
-– रेशमा त्रिपाठी