वैदिक युग में होली को ‘नवान्नेष्टि यज्ञ’ कहा गया था, क्योंकि यह वह समय होता है, जब खेतों में पका हुआ अनाज काटकर घरों में लाया जाता है। जलती होली में जौ और गेहूं की बालियां तथा चने के बूटे भूनकर प्रसाद के रूप में बांटे जाने की परंपरा आज भी थोड़ी-बहुत दिखती है । […]
Author: रेशमा त्रिपाठी
सुध– बुध गंवा बैठी
तेरे अलकों का घुंघराला मुकुट देखकर, मै सुध– बुध गंवा बैठी । अधरों पे तेरे ,मृदु मुस्कान और पुतलियों में तेरी लालिमा देखकर मैं सुध– बुध गंवा बैठी । माथे का केसर तिलक देखकर तेरे मीणा में चंचलता देखकर मैं सुध– बुध गंवा बैठी । तेरे रूह की छाया में मैं, ऐसी रूहानी हुई कि […]
‘पेंटिंग अकेली है’ कहानी संग्रह पर एक सूक्ष्म दृष्टि
हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध कथाकार सामाजिक, आर्थिक और मानवीय अधिकारों के लिए संघर्षरत होकर विविध समुदायों को उनको अधिकारों को दिलाने में सहायक लेखिका चित्रा मुद्गल जी की कहानी संग्रह है– ‘पेंटिग अकेली हैं ‘ इसकी कथा भूमि महिलाओं, श्रमिकों, दलितों और आदि वासी , वंचित समाज वा उपेक्षित बुजुर्गों के संघर्षरत जीवन , द्वंद्व […]
जातिगत जनगणना चर्चा का विषय क्यों ?
जनगणना अर्थात् ‘लोगों की गणना ‘ इंग्लिश में इसे‘ सेंसस’ कहते हैं । विश्व के समस्त देशों में भारत की जनगणना प्रशासनिक दृष्टि से सबसे जटिल प्रक्रियाओं में से एक हैं । इसमें प्रत्येक दस वर्ष के निश्चित अंतराल की अवधि में भारत में रह रहे लोगों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और जनसंख्या के पहलुओं […]
आया जब से देश में, हैं कोरोना
आया जब से देश में, हैं कोरोना सभी मायूस,ख़ामोश , सतर्क रहने लगे जब तक दवाएं न थी, सब दुआओं में महफूज़ थे दवाएं जो आयी , सब निडर हो गए फिर जो फूटा कहर, सब आहत हुए हर घर में दहशत हुई, सब सहमें से हैं हर घरौंदे में अब ,एक–एक रिक्तता बढ़ने लगी […]
पतझड़ की वह शाम
पतझड़ के दिन यूं तो हर वर्ष आते हैं लेकिन पिछले साल कुछ यादगार शाम लेकर आया लगा जैसे जिंदगी बदलने वाली हैं पर ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे शब्दों में कहा जा सकता था बस महसूस हुआ जैसे पेड़ से पत्ते गिरते ही उनका अस्तित्व खत्म हो जाता हैं,उसे कभी भी, कोई भी, […]
श्रीकृष्ण मित्र के रूप में
गोकुल से मथुरा तक का सफर तय करने वाले नवजात शिशु के रूप श्रीकृष्ण जन्म उत्सव प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को करागर में जन्म लेने वाले देवकीनन्दन के पुत्र ,यशोदा के लाल , बांके बिहारी जी के रूप में मनाया जाता हैं जो ६४ कलाओं से परिपूर्ण होते हुए भी […]
तुम्हें क्या पता
मुझे तो दर्द की ,थपकियों ने सुलाया पर तुम्हें क्या पता? किस– किसने हैं रुलाया यूॅ॑ ही आॅ॑खें झील सी न हुई जिसमें तुम डूब जाना चाहते हो गम हजारों दफन हैं उसमें पर तुम्हें क्या पता? डरती हूॅ॑ खुद ही, कहीं डूब न जाऊॅ॑ अपने अन्दर पल रहें, अज्ञात भय से पर तुम्हें क्या […]
ये प्रेम नहीं कोई खेल प्रिये
ये प्रेम नहीं कोई खेल प्रिये, यह तो मर्यांदित बन्धन हैं। तुम हृदय में कुंठा मत पालों , मैं तुलसी जैंसी पावन हूॅ॑।। वृंदावन की मिट्टी हूॅॅ॑ हर जन्म तुम्हें ही पुॅ॑जूगीं। तौलों मत मुझको अरबी डॉलर से मैं तो तेरे ही रूह में बसती हूॅ॑ ।। राधा का सा प्रेम लिए माॅ॑ सबरी सी […]
वर्तमान कवि की कविता और दशा
“कविता समय के धड़कनों को प्रस्तुत करती हैं यहीं उनकी जीवंतता भी होती हैं । समय से संवाद की अनुभूतियां अभिव्यक्त होकर कुछ पाने का हर्ष करती हैं, तो कुछ खोने का विषाद भी ।” डॉ बारेलाल जैन जी के इस कथन पर प्रकाश डाले तो ऐसा लगता हैं कि मीडिया का कोई पत्रकार अपनी […]