कविता

तुम्हें क्या पता

मुझे तो दर्द की ,थपकियों ने सुलाया
 पर तुम्हें क्या पता? किस– किसने हैं रुलाया
यूॅ॑ ही आॅ॑खें झील सी न हुई
 जिसमें तुम डूब जाना चाहते हो
गम हजारों दफन हैं उसमें
पर तुम्हें क्या पता?
डरती हूॅ॑ खुद ही, कहीं डूब न जाऊॅ॑
 अपने अन्दर पल रहें, अज्ञात भय से
पर तुम्हें क्या पता?
समझती हूॅ॑ खुद को, समझाती हूॅ॑ खुद को
कई बार गिरती सम्हलती हूॅ॑ खुद ही
पर तुम्हें क्या पता
कभी दुआओं तो,कभी बद्दुआओं में हूॅ॑ पलती
दुनिया की नजरों में नमक– मिर्च सी लगती
पर तुम्हें क्या पता किस– किसने हैं रुलाया ।
— रेशमा त्रिपाठी

रेशमा त्रिपाठी

नाम– रेशमा त्रिपाठी जिला –प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश शिक्षा–बीएड,बीटीसी,टीईटी, हिन्दी भाषा साहित्य से जेआरएफ। रूचि– गीत ,कहानी,लेख का कार्य प्रकाशित कविताएं– राष्ट्रीय मासिक पत्रिका पत्रकार सुमन,सृजन सरिता त्रैमासिक पत्रिका,हिन्द चक्र मासिक पत्रिका, युवा गौरव समाचार पत्र, युग प्रवर्तकसमाचार पत्र, पालीवाल समाचार पत्र, अवधदूत साप्ताहिक समाचार पत्र आदि में लगातार कविताएं प्रकाशित हो रही हैं ।