मोल है अच्छाई का
भले चलो पथरीले पथ पर, साथ हो सचाई का।
अडिग निर्भय मन विचलित न हो, तुफां हो बुराई का।
सोच अपनी साकार होगी, हो कर्म भलाई का।
भेद रता भी न आए मन में, अपना पराई का।
एक मुठ्ठी में बाँध लो रिश्ते, पाटो बंधन खाई का।
वैरभाव नफरत को छोड़ो, मोल हो अच्छाई का।
रोशनियाँ मायूस हो जाएं, छाऐं घोर अंधेरे।
आशाओं के दीप जलाओ, आएंगे नए सबेरे।
सभी को दिया है मालिक नें, भाग्य लेख उकेरे।
लग जाएं अंबार दुखों के, ज्यूँ मकड़ी के डेरे।
कभी तो सूरज निकलेगा, होंगे दूर हनेरे।
चाहे काल जी भर बिछाले, क्षण संकट बहुतेरे।
रख विश्वास नित ईश्वर पर, आए काम वो तेरे।
जिस के सिर, हाथ मालिक का, उसे दुख कैसे घेरे।
— शिव सन्याल