ग़ज़ल
कहीं न दूर तक कोई निशान होता है
न ज़मीं न कहीं आसमान होता है
किस्मत में क्या लिखा है तूने मेरे खुदा
कदम-कदम पे नया इम्तिहान होता है
नहीं तुमसे कोई उम्मीद ए दुनिया वालो
हम गरीबों का रब सायबान होता है
नई उलझन कोई यक-ब-यक आ जाती है
जब भी दिल को थोड़ा इत्मिनान होता है
छुपा के गम अपने मुस्कुराहटें बाँटे
वैसा शख्स ही महफिल की जान होता है
— भरत मल्होत्रा