तुम्हारा आना शाश्वत प्रिय
तुम्हारा समय निश्चित है
दिल की धड़कन घड़ी की सूईयों की तरह
थँम जाएगी
रूप, रंग, गंध पाँच तत्व में समेट कर
चेतना अचेत हो कर
आगोश में समा जाएगी तुम्हारे कोमल से
अनंत सुखमय वेला में
मैं डरता तुम आ न जाओ
मेरे छुपे हुए अंह की चेतना में
तुम प्यार से गुदगुदा न दो
मेरे स्नेह निर्झर को
अपनें अंचल में
छुपा लोगी जब मन भंवरा सा मोह माया में
उदेलित हो कर रम रहा हो संसार की रचना में
तुम्हारा प्यार वफ़ा है
तुम्हारे बंधन में बंध कर
मुक्त हो जाऊँगा इस नश्वर संसार से
तुम ले जाओगी
पलकों की छाँव में पिया के घर
जिस का मन , मन ही चिंतन करता है
प्रिय ले जाना जब तुम चाहो
बिना रोग वियोग वेदना के
मैं पलकें विछाये
तब तक इन्तजार करूँगा।
— शिव सन्याल