क्रंदन
कई दिनों से रोज सुरभि को सपने में एक छायाचित्र दिखाई दे रहा था, जिसमें माइक के पीछे से निकलते हुए दो हाथ मानो बचाने के लिए गुहार करते लग रहे थे. कौन हो सकता है यह, वह सोचती रहती थी.
”कहीं यह प्रोमिला तो नहीं है, जो ऑनर किलिंग के डर से कुएं में कूद गई थी!” कभी वह सोचती.
”यह खुशी तो नहीं है, जिसका चेहरा एसिड अटैक में बदरंग हो जाने के कारण उसकी खुशी ग़म में बदल गई थी!” कभी उसके मन में विचार उठता था!
”हो सकता है यह सुरेखा की रुलाई हो, अपहरण और बलात्कार के बाद जिसकी जीवन-रेखा ही मिटा दी गई थी. वह भी तो ऐसे ही जोर-जोर से चिल्लाई होगी!”
”उफ्फ, रोज यही सपना!” सुरभि अपने आप से बात कर रही थी, ”क्या यही देखना बाकी रह गया था.”
”शुक्र है, आप लोगों को कुछ सुबुद्धि तो आई! इस बार मुझ में नहीं हुआ कोई मूर्ति विसर्जन!” प्रसन्नता से सराबोर एक आवाज मानो उससे अपनी खुशी साझा कर रही थी.
”दुर्गा पूजा: दिल्ली में पहली बार यमुना में नहीं हुआ कोई मूर्ति विसर्जन.” पढ़ते ही बहुत दिनों से चिंतित-आशंकित सुरभि को मानो सपने में देखे गए चित्र का रहस्य समझ में आ गया.
यह यमुना मैय्या का क्रंदन था, जो दुर्गा पूजा की पावनता से उत्साहित होते हुए भी मूर्ति विसर्जन के कारण अपने बढ़ते हुए प्रदूषण की आशंका से आशंकित थी.”
सुरभि का चेहरा खिल उठा. अब दिवाली को ग्रीन पटाखों से मुक्ति दिलाने हेतु वह सबको संगठित करने के लिए चल पड़ी.
दुर्गा पूजा: दिल्ली में पहली बार यमुना में नहीं हुआ कोई मूर्ति विसर्जन
दुर्गा पूजा के इतिहास में शायद यह पहला मौका था, जब मूर्तियों का विसर्जन यमुना में नहीं हुआ। शहर के लगभग सभी चर्चित घाटों पर पुलिस ने बैरिकेडिंग की व्यवस्था की थी और यमुना में एक भी मूर्ति का विसर्जन नहीं हुआ।
ग्रीन पटाखे नहीं थे उपलब्ध, रावण दहन में स्पीकरों से निकाली आवाज
पुतलों में पटाखों की जगह पराली भरी थी और इलेक्ट्रिक तार लगाए गए थे, ताकि पुतले की लकड़ियां ठीक से जल सकें। पटाखों की आवाज निकालने के लिए साउंड सिस्टम लगाए गए थे।