गीत
सरहद पर रावण खिसियाया,
तुम व्यस्त यहाँ अगवानी में।
थैली – माला लिए खड़े हो ,
मक्खन सँग रजधानी में।।
एक ओर प्लास्टिकबन्दी है,
उधर सुलगता है बारूद।
इधर जलाते तुम पुतलों को,
बाँध पट्टियाँ आँखें मूँद।।
पता नहीं है तुमको शायद,
दुश्मन कितने पानी में।
सरहद पर रावण…..
लाख करोड़ों पौधे रोपे,
पर मुँह फेर नहीं देखा।
पर्यावरण के गीत गा रहे,
अम्बर में काली रेखा।।
औरों को उपदेश दे रहे,
समझाओ यह मानी मैं।
सरहद पर रावण….
नेताओं की पूँछ थामकर,
डूब स्वयं भी जाओगे।
करनी जिनकी झूठी सारी,
कथनी में क्या पाओगे??
आ मत जाना इनके झाँसे,
बात मधुर बचकानी में।
सरहद पर रावण …..
सत्य बात कह दो तो अंधे –
भक्तों को लगती है चोट।
जाति धर्म में बाँट देश को,
रिश्वत में बँटते हैं नोट।।
राजनीति वोटों की गंदी,
लगती आग जवानी में।
सरहद पर रावण….
अनपढ़ कृषक ठगे जाते हैं,
जीरा खिला ऊँट के पेट।
हुआ ‘शुभम ‘उद्धार देश का ,
खुले तरक़्क़ी के सब गेट।।
अंतर आया नहीं तनिक भी,
उनके छप्पर – छानी में।
सरहद पर रावण ….