कविता

दीपावली और प्रदूषण

माना कि प्रदुषण फैलता है पटाखों से मगर,
ख़ुशी के इजहार पर, पहरे लगाए नहीं जाते।
पटाखों की जगह भूखों को खाना खिलाने वालों,
भिखारियों को क्यों रोजगार दिलाये नहीं जाते ?
बातें करते बड़ी बड़ी, दिवाली के अवसर पर,
ईद के पटाखे क्या तुम सुन नहीं पाते ?
होती हैं शादियां जब आपके बच्चों की,
पटाखों के शोर से सारा आकाश गुँजाते ?
किसने दिया आलोचना करने का हक़ तमको,
खुद में बदलाव ज़रा भी, जब कर नहीं पाते।
पर्यावरण की बातें, ए सी दफ्तर में बैठकर,
ए सी से वातावरण में जहर, तुम ही मिलाते।
नववर्ष पर आप भी, करते खुशी इजहार,
रात भर पटाखे चलें, और दारू पीते पिलाते,
इस अवसर रात भर, प्रदूषण फैलाने वालो,
क्या पटाखे शाकाहारी बने, बिमारी नही फैलाते?
— डॉ अ कीर्तिवर्धन