शोभावती छंद (हिन्दी भाषा)
देवों की भाषा से जन्मी हिन्दी।
हिन्दुस्तां के माथे की है बिन्दी।।
दोहों, छंदों, चैपाई की माता।
मीरा, सूरा के गीतों की दाता।।
हिंदुस्तानी साँसों में है छाई।
पाटे सारे भेदों की ये खाई।।
अंग्रेजी में सारे ऐसे पैठे।
हिन्दी से नाता ही तोड़े बैठे।।
भावों को भाषा देती लोनाई।
भाषा से प्राणों की भी ऊँचाई।।
हिन्दी की भू पे आभा फैलाएँ।
सारे हिन्दी के गीतों को गाएँ।।
हिन्दी का लोहा माने भू सारी।
भाषा के शब्दों की शोभा न्यारी।।
ओजस्वी सारे हिन्दी भाषाई।
हिन्दी जो भी बोलें वे हैं भाई।।
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शोभावती छंद विधान –
मगण*3 +गुरु
222 222 222 2 = 10 दीर्घ वर्ण की वर्णिक छंद। चार चरण, दो दो समतुकांत।
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— बासुदेव अग्रवाल नमन