फिर सदाबहार काव्यालय- 45
“एक नन्ही-मुन्नी के प्रश्न ”
मैं जब पैदा हुई थी मम्मी,
तब क्या लड्डू बांटे थे?
मेरे पापा खुश हो कर,
क्या झूम-झूम कर नाचे थे?
दादी-नानी ने क्या मुझको,
प्यार से गोद खिलाया था?
भैया के बदले क्या तुमने,
मुझको साथ सुलाया था?
प्यार अगर था मुझसे माँ,
तो क्यों न मुझे पढ़ाया था?
मनता बर्थ-डे भैया का है,
मेरा क्यों न मनाया था?
था करना मुझसे भेदभाव,
तो दुनिया में क्यों बुलाया था?
क्या मैं तुम पर भार हूँ माँ?
फिर तुमने क्यों ये जताया था?
तुम भी तो एक नारी हो,
क्या तुमने भी यही पाया था?
गर तुमने भी यही पाया था,
तो क्यों न प्रश्न उठाया था?
अपने वजूद की खातिर माँ,
क्यों मेरा वजूद झुठलाया था?
तुमने अपने दिल का दर्द,
कहो किसकी खातिर छुपाया था?
मैं तो आज की बच्ची हूँ,
मुझको ये सब न सुहाता है,
इस दुनिया का ऊँच-नीच,
सब मुझे समझ में आता है,
इसीलिए तो अब मुझको माँ,
आँधी में चलना भाता है,
मेरी चिंता मत करना माँ,
मुझे खुद ही संभलना आता है।
– डॉ० अनिल चड्डा
संक्षिप्त परिचय
आपका जन्म दिल्ली में 1952 में हुआ था । कविता लिखने का शौक बचपन से ही रहा है, शायद 14-15 वर्ष की उम्र से ही। दिल्ली से विज्ञान में स्नातक तक की पढाई करने के बाद आपने अपनी कविता में निखार लाने के लिए हिंदी में एम.ए. किया और फिर पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की । 1972 में सरकारी नौकरी शुरू करके 2012 में निदेशक के पद से सेवानिवृत हुए। इस बीच अनेक कविताओं की रचना की, जिन्हें इनके ब्लागों https://anilchadah.blogspot.com, https://anubhutiyan.blogspot.in पर पढ़ा जा सकता है। इनकी रचनायें साहित्यकुञ्ज, शब्दकार एवं हिन्दयुग्म जैसी ई-पत्रिकाओं के अतिरिक्त सरिता, मुक्ता, इत्यादि पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रही हैं । हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिये और उन साहित्यकारों को, जो साहित्यरचना में योगदान करने के बावजूद अनजान ही रह जाते हैं, एक मंच देने के लिये उन्होंने एक हिंदी वेबपत्रिका साहित्यसुधा प्रारम्भ की है।
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डॉ० अनिल चड्डा की धारदार लेखनी से इस बार जो कविता “एक नन्ही-मुन्नी के प्रश्न” निःसृत हुई है, वह बहुत-से विचारणीय प्रश्न उठा रही है. आज भी ऐसा नजारा नजर आता है, कि एक जैसे चार विकल्प सामने रखकर पहले लक्ष्मी-स्वरूप कन्या को चुनने के लिए कहा जाता है. इसके साथ ही ऐसे भी नजारे नजर आते हैं जैसा कि डॉ० अनिल चड्डा ने अपनी कविता में वर्णन किया है. लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करती इस शानदार-जानदार कविता के लिए डॉ० अनिल चड्डा बधाई के पात्र हैं.