मधुगीति – तुम सुर में बसी उनकी झलक!
तुम सुर में बसी उनकी झलक, लख लिया करो;
आओ न आओ उनकी ग़ज़ल, गा लिया करो !
दरम्यान उनके औ तुम्हारे, दूरियाँ कहाँ;
दरवाज़ा खोल बार बार, मिल लिया करो !
आँखों का नूर चित को चूर, करता रहा है;
आहिस्ते बना रिश्ते खुद को, खो दिया करो !
खोये वहीं हैं हर ही सबब, शब्द में सोये;
चुपचाप उनकी चाप सुने, सुध लिया करो !
हर उर के आफ़ताब झाँके, झरोखे रहे;
‘मधु’ उनके सृष्टि रस का पान, कर लिया करो !
✍🏻 गोपाल बघेल ‘मधु’