ग़ज़ल
जो दिल ग़म से ख़ाली है।.
उसकी रोज़ दिवाली है।।
दिए सुकूँ के रौशन हों,
उस घर सदा दिवाली है।
रोग रहित हो जिसका तन,
रहती वहीं दिवाली है।
मधुर बोल जिस भार्या के ,
रात – दिवस दीवाली है।
आज्ञाकारी जो संतान,
हरदम वहीं दिवाली है।
पर – उपकारी जो मन से,
बारह मास दिवाली है।
‘शुभम’ हाथ में माया हो,
वह दीवाली दिवाली है।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम ‘