ग़ज़ल
उसने दिया हमको ये इल्जाम है।
इश्क को हमने किया बदनाम है।।
रूठ कर हम जाये किधर किस शहर।
हर तरफ सद्दाम ही सद्दाम है।
कत्ल करने की अदा भी है जुदा।
कत्ल करके लिख दिया गुमनाम है।।
खो गया वो खत किधर उसका लिखा।
उसमें लिखा था मेरा पैगाम है।।
बेवफा का साथ दूं मै किस तरह।
खाक हो मरना यही अंजाम है।।
मैने तो यारी निभायी उम्र भर।
फिर वो देकर क्यूं गया असकाम है।।
साथ उसका मैं निभाऊं क्यूं भला।
बेवफाई का लगा इल्जाम है।।
जाये जाना है जिधर वो शौक से।
मिल गया हमको भी सुन्दर धाम है।।
वो सताता ही रहेगा है पता।
कब दिया इक तोहफा इन्आम है।।
— प्रीती श्रीवास्तव