नवगीत
नेता तो जब-जब आते हैं।
कमजोर सताये जाते हैं॥
रूखा-सूखा जो भी पाएँ,
खाकर अपनी भूख मिटाएं,
करवट ले रात बिताते हैं,
नेता तो जब-जब आते हैं।
कमजोर सताये जाते हैं॥
मोटा-झोँटा पहना करते,
महलों की अभिलाष न करते,
छोटी झोपड़ी बनाते हैं,
नेता तो जब-जब आते हैं।
कमजोर सताये जाते हैं॥
शहर बड़े अपने सुंदर हैं,
सिर्फ यहाँ धनियों के घर हैं,
कंगाली निशां मिटाते हैं,
नेता तो जब-जब आते हैं।
कमजोर सताये जाते हैं॥
राही को कठिनाई होती,
रोगी मौत दवाई होती,
घंटों फिर जाम लगाते हैं,
नेता तो जब-जब आते हैं।
कमजोर सताये जाते हैं॥
दुःख दर्द नहीं वो सुनते हैं,
अपनी-अपनी बस कहते हैं,
दर्शन दे एहसान जताते हैं,
नेता तो जब-जब आते हैं।
कमजोर सताये जाते हैं॥
पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’