यूँ तो हमेशा ही
यूँ तो हमेशा ही ये लब, ये आँख मुस्काती रही।
दिल से रोने की मगर आवाज़ संग आती रही।।
न पूछ कैसे कारवां, चलता रहा इस सांस का।
तेरी खबर के संग संग आती रही जाती रही।।
पहले ही दर्द-ए-फ़िराक़ ने गुंजाइशें छोड़ी न थीं।
उस पर थी तेरी याद जो शिद्दत से तड़पाती रही।।
यूँ सोचती हूँ आज फिर, मुद्दत से सोई हूँ कहाँ।
आँखों मे नींद रख के बस हौले से थपकाती रही।।
वादा ख़िलाफ़ी के लगे इल्ज़ाम मुझपे सौ मगर।
वादा वफ़ा करने को मैं हँसती रही गाती रही।।
मन्ज़िलों ने दूरियां मुझसे निभाई लाख पर।
मैं राह भूली जब ‘लहर’ वो राह पे लाती रही।।
सादर आभार आदरणीया… आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुत महत्व रखती है… आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏😊
बहुत सुंदर
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