चमक
समीर की तरह मस्ती में झूमती-इठलाती रहने वाली समीरा दीपावली नजदीक आने पर कुम्हलाई-सी दिख रही थी.
”दीदी, आपकी तबियत तो ठीक है न!” रोटी बनाते-बनाते कामवाली रीता ने पूछा.
”हां तबियत तो ठीक है, पर मुझे समझ नहीं आ रहा कि दिवाली पार्टी पर कौन-सी ड्रेस पहनूं?”
”आपके पास ड्रेसेज़ की कौन कमी है? ऊपर से आप जो भी पहनती हैं, हीरोइन माफिक लगती हैं, ऐसा लगता है यह ड्रेस आपके लिए ही बनी है.”
”यही तो चक्कर है! जब से मैंने मौनी रॉय की गोल्डन साड़ी, दिशा पाटनी का ब्लू कलर का लहंगा, करिश्मा कपूर का अनारकली सूट वाले फोटोज़ देखे हैं, कंफ्यूज़ हो गई हूं.”
”छोड़िए भी दीदी जी, अभी आपने जो पिंक और पर्पल कलर की लॉन्ग ड्रेस सिलवाई है, उसे आपको पहने देखकर तो ये सभी हीरोइनें खुद कंफ्यूज़ हो जाएंगी!” रीता की आंखों की चमक देखकर समीरा को लगा दियों के उजाले नमूदार हो गए हैं.
रीता की आंखों की चमक में समीरा को दियों के उजाले दिखाई दिए.
कभी-कभी सामान्य माने जाने संतुष्ट लोग भी बड़े-बड़ों को खुशी और संतुष्टि का बहुत बड़ा सबक सिखा जाते हैं. खुशी है, तो हर रोज दिवाली है.