जल की कमी या टेक्टोनिक प्लेटों में हलचल के कारण भारत के कुछ भूभाग सिकुड़ रहे हैं
भारत के जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वरीष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा पिछले ढाई साल के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) की मदद से किए गये सर्वेक्षण में मिले आँकड़ों के विश्लेषण से एक बहुत ही चौंकाने और स्तब्ध करने वाला समाचार उद्घाटित हुआ है, उन भारतीय वैज्ञानिकों के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ भाग जैसे कोलकाता का पूर्वी सॉल्टलेक एरिया, देहरादून, जयपुर, बेंगलुरू और हैदराबाद जैसे शहर प्रतिवर्ष चिंताजनक रूप से ‘सिकुड़ ‘ रहे हैं।
इन भूवैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के सतह के सिकुड़ने के प्रमुख रूप से दो कारण होते हैं, पहला भूजल में कमी और दूसरा भूगर्भीय टेक्टोनिक प्लेटों में हलचल। कोलकाता का सॉल्टलेक एरिया का एक बड़ा भूभाग जलाशयों और झीलों से बना है। वैज्ञानिक अभी इस बात पर निश्चित राय नहीं बना पाए हैं कि भारत में सिकुड़ने की सर्वाधिक गति वाला यह सॉल्टलेक एरिया के क्या कारण हैं? वैसे सॉल्टलेक एरिया प्रतिवर्ष 19-20 मिमी.की गति से सिकुड़ रहा है, परन्तु हिमालय की तलहटी और आसपास देहरादून जैसे इलाके के धंसने का कारण निश्चितरूप से भूजल समाप्त होना और टेक्टोनिक प्लेटों का खिसकना ही है।
भारत में भूगर्भीय और भूभौतिक मापन के लिए देश भर में 22 वेधशालाएं स्थापित हैं, प्रत्येक वेधशाला अपने 300 किलोमीटर की परिधि में ऊर्ध्वाकार व क्षैतिज गणना करती रहती हैं। इन वेधशालाओं की गणनाओं के अनुसार पृथ्वी की भूगर्भीय टेक्टानिक प्लेटों में बदलाव की वजह से समुद्र तल से प्रतिवर्ष हिमालय की ऊँचाई बढ़ रही है, यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि पटना और नागपुर शहरों की भी प्रतिवर्ष ऊँचाई बढ़ रही है, जबकि भयंकर भूगर्भीय जल के दोहन से जयपुर शहर सिकुड़ रहा है।
भारत का धुर दक्षिणी राज्य केरल की राजधानी तिरूअनंतपुरम और महाराष्ट्र का पुणे की आसपास की पश्चिमी तट की धरती पृथ्वी की आन्तरिक टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल की वजह से पड़ने वाले दबाव व भीषण तापमान की वजह से मुड़ने की प्रक्रिया (फोल्डिंग प्रोसेस) से गुजर रही है।
उक्त सभी भूगर्भीय हलचलों और मानवकृत कृत्यों से पृथ्वी के धरातल पर हो रहे परिवर्तनों पर भारत के जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वरीष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा जीपीएस की सहायता से निरंतर और सूक्ष्मता से चौबीसों घंटे वैज्ञानिक आकलन सतत और गहन अध्ययन जारी है और वे इसके समाधान की कोशिश भी कर रहे हैं।
— निर्मल कुमार शर्मा