क्षणिका

मैं माटी का दीप

 

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मैं माटी का दीप,
स्नेह से सिक्त होकर,
रुई की बाती का सहारा लेकर,
जलूं निरंतर जग को रोशन करूं,
आंधी-तूफान से नहीं डरूं,
जब तक है जान, जग का तम हरूं,
मिल जाए जो स्नेह तनिक फिर मुझे,
खुद भी दिप-दिप हो,
जग को जगमग करूं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “मैं माटी का दीप

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    aap sab ko bhi dhanters ki shubhkaamnaayen .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपको भी सपरिवार धनतेरस की ढेरों शुभकामनाएं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    नन्हे माटी के दीप के तेज को
    आइए नापने चलें
    दीपों की श्रृंखला के
    झिलमिलाते बिंब को
    आइए भांपने चलें।

    अब के बरस
    माटी के दीप की तरह
    क्यों न हम भी
    अपने अपने तेज की आंच को
    जांचने चलें…।

  • लीला तिवानी

    आप सबको सपरिवार धनतेरस और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.

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