ग़ज़ल
क्या हाथों में हाथ न दोगे?
जीने के जज़्बात न दोगे?
मात अगर अबकी भी खा लूँ ,
आगे से फिर मात न दोगे?
जिसमें हम दोनों ही भीगें,
वो बरसाती रात न दोगे?
यादों के सँग ही रह लूँ मैं,
इतना भी सँग-साथ न दोगे?
दिल न दिया है दर्द ही दे दो,
कोई भी सौग़ात न दोगे?
–डॉ. कमलेश द्विवेदी