गीतिका/ग़ज़ल ग़ज़ल *जयकृष्ण चाँडक 'जय' 26/10/2019 दिल को जोड़, नफ़रत छोड़। पास है मंज़िल, सरपट दौड़। झूठ, दिखावा, लगी है होड़। मेहनत कर, पत्थर फोड़। चल सीधे ही, बड़े हैं मोड़। गीता पढ ले, सार निचोड़। गद्दार कई हैं, गला मरोड़। धर्म की बेड़ी, आ ‘जय’ तोड़। — जयकृष्ण चांडक ‘जय’