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भारत में दीपावली मनाने की वैज्ञानिकता

आपके समाचार पत्र दिनांक 26-10-19 को प्रकाशित संपादकीय लेख ‘किसानों ने ही शुरू की थी दीवाली’ पढ़ा। हिन्दू धर्ममानने वालों के सबसे प्रमुख त्योहारों में प्रकाशोत्सव का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली का भारतीय कृषिप्रधान ग्रामीण तथा शहरी समाज में बहुत बड़ा पारिवारिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्व है। इस त्योहार में भारतीय समाज के लगभग हर हिन्दू घरों में साफ-सफाई, रंग-रोगन आदि की जाती है, जिससे पिछले एक साल से इकट्ठी हुई गंदगी और घर में पल रहे हानिकारक कीड़े-मकोड़ों यथा मच्छरों-मक्खियों और अन्य हानिकारक कीटाणुओं का नाश हो जाता है इससे यह त्योहार समाज में एक ‘अच्छे स्वास्थ्य व खुशहाली, संपन्नता ‘का भी त्योहार माना जाता है।
इस त्योहार के प्रारम्भ होने के संबंध में कई कहानियां और पौराणिक दंत कथाएं सुनने को मिलतीं हैं यथा इसी दिन मर्यापुरूषोत्तम श्रीराम के लंकायुद्ध जीतकर सीताजी सहित अपने सभी विश्ववस्थ सहयोगियों व सेना के साथ अयोध्या लौटना या जैनतीर्थंकर महावीर स्वामी के महापरिनिर्वाण या नरकासुर के मारे जाने या महायोद्धा बाली का प्रस्थान आदि-आदि के प्रसंग हैं। परन्तु अभी हुए नवीनतम शोधों में कुछ अमेरिकी, यूरोपियन और भारतीय वैज्ञानिकों के एक दल ने यह सिद्ध किया है कि दीपावली के त्योहार मनाने का शुद्ध कारण वैज्ञानिक है, उनके अनुसार, चूँकि बारिश के दिनों में प्रकृति में हजारों तरह के हानिकारक कीटों का अविर्भाव हो जाता है, जो किसानों द्वारा उगाए फसलों के लिए बहुत ही हानिकारक होते हैं, इसलिए यह त्योहार ईसा से पूर्व से ही अमावस्या की पूर्णतः अंधेरी रात में भारतीय कृषक समाज द्वारा अविष्कृत किया गया था व प्रचलन में था, इस त्योहार में सरसों या अरणीं के तेल के दीपों को जलाकर रखने और खेतों के आसपास मशालों को लेकर उसके चारों तरफ चक्कर लगाने से खेतों में फसलों को नुकसान पहुँचा रहे हानिकारक कीट पतंगों को दीपक की लौ या मशालों में जलकर मर जाने से किसानों की फसलों के दुश्मन कीट-पतंगों की बहुत बड़ी संख्या नष्ट होने से फसलों का उत्पादन अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है।
इसके अतिरिक्त यह त्योहार समाज के हर व्यक्ति को आर्थिक संबल प्रदान करता है जैसे मिट्टी के बनाए दीपकों से उनके बनाने वालों, तेल के प्रयोग से उससे सम्बंधित लोगों, रंगाई-पुताई से लाखों मजदूरों, बेलदारों और राजमिस्त्रियों को तथा दर्जियों, तमाम छोटे-बड़े दुकानदारों को भी आर्थिक फायदा होता है जो दीपावली के अवसर पर घरों को अलंकृत करने वाले छोटे से छोटे सामान को बनाकर उसे बेचते हैं। इस प्रकार यह त्योहार समाज के हर व्यक्ति को उसके जीवन में सुखसमृद्धि का कारण बन जाता है।
दीपावली मनाने की शुरूआत ईसवी पूर्व से प्रारंभ होकर सातवीं सदी में श्री हर्षचरित नाटक ‘नागानंद ‘ में, ईरानी यात्री अलबरूनी द्वारा लिखे यात्रा वृतांत में भी वर्णित है। उन अभिलेखों के अनुसार दीपावली के मौके पर बादशाह खेतों और गाँवों के चारों तरफ जगह-जगह बांस के खंभे गड़वाकर रात में उस पर तेल के दीयों से उन्हें प्रज्ज्वलित करवाते थे, इसके अतिरिक्त अबुल फजल द्वारा लिखित ‘ आइने-अकबरी ‘ में भी मुगलकाल में भी तत्कालीन वणिक समुदाय द्वारा इस त्योहार को ‘ आलोक ज्वाला ‘ के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता था, इस प्रकार इस त्योहार का सम्पूर्ण देश में ईसापूर्व जैन तीर्थंकर स्वामी महावीर या बौद्ध कथाओं में भी प्रकाशोत्सव मनाने का जिक्र तमाम बौद्ध व जैन महालेखों में मिलता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि दीपावली जैसा प्रकाशोत्सव का त्योहार हजारों सालों पूर्व यहाँ के कृषक समाज ने फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों को सामूहिक रूप से मारने का यह एक वैज्ञानिक सम्मत त्योहार शुरू कर दिया था, , न कि यह पौराणिक मिथकों और अंधश्रद्धा आधारित त्योहार है। इसका समर्थन अमेरिकी वैज्ञानिक समुदाय ने भी किया है, उनके अनुसार, ‘ दीपावली का त्योहार भारतीय कृषि आधारित समाज में कीटों को मारने और उनके प्रजननकाल में उनके अत्यधिक बढ़ रही आबादी को नियंत्रित करने का एक ‘ देशज ‘ तरीका है। ‘

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]