एक लड़की थी रिया। जीवन के 17 सावन पार कर चुकी थी ।अल्हड़, हंसमुख, निश्चल, दुनियादारी से दूर, अपने आप को बेहद प्यार करने वाली, जीवन के हर पल को हजार बार जी लेने को बेचैन । मानो एक पूरा जीवन उसके लिए कम पड़ जाएगा। उसकी चंचलता और जिंदादिली तो ऐसी कि मुर्दे में भी जान फूंक दे ।मजाल है उसकी संगत में कोई उदास रह पाता। हंसी और मनगढ़ंत किस्से कहानियों का पिटारा खोल कर बैठ जाती। भला फिर बिना हंसे कोई कैसे रह सकता था? उसके सानिध्य में काफी हद तक घर से, अपनों से दूर रहने की उदासी को मैं भुला चुकी थी ।उसे गाने सुनना और फोटोग्राफी बेहद पसंद थी ।रोमांच से भरपूर जिंदगी जीने की शौकीन रिया हमेशा कुछ नया, कुछ अलग करने की फिराक में लगी रहती। मैं उससे हमेशा पूछती,” आखिर इतनी आतुरता क्यों दिखाती हो हर बात पर?” वह तपाक से उत्तर देती ,”जिंदगी न मिलेगी दोबारा मेरी जान !” और खिलखिला कर हंस पड़ती।
कॉलेज में दीपावली की छुट्टियां पडने वाली थी ।सभी लोग घर जाने की तैयारी में व्यस्त थे ।मैं भी खुश थी ।इतने दिनों बाद सबसे मिलने का समय निकट था ।लेकिन रिया के चेहरे पर वह खुशी मुझे दिखाई नहीं दे रही थी ।यद्यपि वह पहले जैसी ही चहक रही थी ।मैंने कारण जानना चाहा तो उसने बात को हंसी में यह कहते हुए टाल दिया,” तुम्हारे बिना मेरा दिल कहां लगने वाला है ?”अगले दिन कॉलेज में छुट्टियों से ठीक पहले शैक्षणिक भ्रमण पर हिमाचल प्रदेश ले जाने की जानकारी दी गई। इस सूचना को सुनकर हम लोगों में सबसे अधिक उत्साहित रिया थी ।उसे तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई थी । क्योंकि भ्रमण में ट्रैकिंग और ग्लाइडिंग जैसी रोमांचक गतिविधियां भी सम्मिलित थी। निर्धारित तिथि पर हम सभी लोग निकल पड़े ।रास्ते भर अंताक्षरी ,पहेली और गाने का कार्यक्रम चलता रहा ।
अगले दिन सुबह हम सभी लोग वन विभाग के गेस्ट हाउस में पहुंचे जहां हम लोगों के रुकने की व्यवस्था की गई थी। कॉलेज प्रबंधन की ओर से एक गाइडलाइन भी निर्धारित की गई थी जिसके तहत हमें अपने प्रोफेसर्स के निर्देशों का पालन करने के लिए कहा गया था। फॉरेस्ट अधिकारी द्वारा बताया गया कि ग्रुप में ही रहें,अकेले खो जाने का डर है और जंगली जानवरों से भी खतरा हो सकता है।रात में विशेष सावधानी बरतें। सभी ध्यान पूर्वक सुन रहे थे लेकिन रिया मुस्कुरा रही थी उसने बुदबुदाते हुए मुझसे कहा, “अरे हम यहां डर कर दुबकने थोडे ही आए हैं हम तो पूरा मज़ा लेंगे।” मैंने उसे समझाया कि कोई मनमानी मत करना। हमें सेफ्टी रूल्स का पालन करना चाहिए। लेकिन उसने मेरी बात को अनसुना कर दिया।
नाश्ता करने के बाद,लंच पैक कर हम लोग वनस्पतियों की नई ,पुरानी प्रजातियों की खोज में निकल पड़े ।शाम होते तक ढेर सारी पादप प्रजातियां एकत्र हो गई। अगले दिन ट्रैकिंग और ग्लाइडिंग का कार्यक्रम था।रिया सुबह से ही उत्साहित थी।हम सभी निकल पड़े रोमांच का आनंद उठाने।दो टीम बनाई गई और उनके लीडर भी बनाए गए।ट्रैकिंग टीम की लीडर रिया थी।मैं भी उसी में शामिल थी।पहाड़ की ऊंचाई देखकर घबराहट हो रही थी लेकिन रोमांच भी था कुछ अलग सा करने का।हम लोगों ने चढ़ना शुरू किया।सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक मेरे बगल की माधुरी का पैर फिसला साथ ही सुरक्षा के लिए लगाई बेल्ट भी एक ओर से खुल गई जिससे वह नीचे की ओर फिसलने लगी। मैं घबराकर चीख पड़ी।रिया ने मुड़कर देखा और मुझे समझाते हुए बोली घबराओ मत मैं कुछ करती हूं साथ ही उसने माधुरी को भी ऐसा ही करने के लिए कहा। हम पर्याप्त ऊंचाई पर थे और नीचे से तात्कालिक मदद मिलना लगभग नामुमकिन था। रिया सावधानीपूर्वक धीरे-धीरे नीचे की ओर आने लगी ।एक दो बार तो उसका पैर भी फिसलते फिसलते बचा। मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।लेकिन वह एकाग्र चित्त होकर माधुरी की ओर बढ़ रही थी ।शीघ्र ही वह उसके निकट पहुंच गई। उसने अपना संतुलन बनाए रखते हुए खुली हुई बेल्ट को सावधानीपूर्वक बंद किया और उत्साह से भरी आवाज़ में माधुरी को ऊपर की ओर चढ़ने के लिए कहा।अंततोगत्वा हम सफलतापूर्वक पहाड़ी पर पहुंच गए ।सबने रिया की भूरि भूरि प्रशंसा की।
रात का समय था सभी रात्रि भोजन के बाद गेस्ट हाउस के बाहर आग जलाकर नाच गा रहे थे रिया इन हसीन पलों को कैमरे में कैद करने में लीन थी । मैं भी बैठकर यह सब देख रही थी कि अचानक मुझे रिया के पीछे कुछ आंखें चमकती हुई सी दिखी । मुझे समझते देर नहीं लगी कि जरूर हिंसक पशु है जो शिकार की तलाश में निकले हैं। शीघ्र ही वे आकृतियां स्पष्ट हो गई ।तीन या चार भेड़िए रिया की ओर बढ़ रहे थे। मैं जोर से चीखी । रिया जब तक समझ पाती तब तक भेड़िए उस पर झपट चुके थे। मेरी चीख सुनकर सभी तेजी से जलती लकड़ियां लेकर उसे बचाने दौड़े। आग और लोगों के डर से भेड़िए रिया को छोड़कर जंगल की ओर भाग खड़े हुए। लेकिन रिया बुरी तरह घायल हो चुकी थी। उसके रक्त रंजित शरीर को देखकर मैं अचेत होकर गिर पड़ी।
होश आया तो पता चला कि रिया को पास के अस्पताल में उपचार के लिए ले जाया गया है। मैं उससे मिलने पहुंची तो पता चला कि उसकी एक टांग काटनी पड़ी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे क्या दिलासा दूंगी, कैसे समझाऊंगी? लेकिन ये क्या ?उसके कमरे से तो हंसी की आवाज़ आ रही थी। मैं ने लगभग दौड़ते हुए कमरे में प्रवेश किया।उसके शरीर पर लगे घाव और कटा हुआ पैर भी उसके हौसले को नहीं तोड़ पाए थे। मैं उससे लिपटकर रोने लगी तो उसने मुझे चुप कराते हुए कहा,” अरे पगली क्यों रो रही हो? तुम तो बहादुर लड़की हो, तुम्हारे कारण ही तो आज मैं जिंदा हूं नहीं तो उन भेड़ियों का डिनर बन गई होती। तुमने तो उन बेचारों की पार्टी खराब कर दी।” कहते हुए हंस पड़ी। मैं यह सोचकर आश्चर्य चकित थी एक पैर गंवाने के बाद भी वह हताश नहीं हुई थी।
आज इस घटना को दस साल हो गए हैं। रिया ने कभी भी परिस्थितियों से हार नहीं मानी। उसने कभी भी विकलांगता को अपनी सफलता की बाधा नहीं बनने दिया। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक अच्छी सी नौकरी भी। लेकिन इन सब के साथ उसने खेलों में भी जमकर धूम मचाई। उसने विकलांगों की बहुत सी प्रतियोगिताओं में भाला फेंक विधा में पदक जीते। रिया आज भी उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो जीवन की जरा सी कठिनाइयों से घबराकर हार मान कर स्वयं को आघात पहुंचाने और आत्महत्या जैसे कायरता पूर्ण कदम उठाने का निर्णय लेते हैं।
— कल्पना सिंह