ग़ज़ल “तो कोई बात बने”
जिन्दगी साथ निभाओ, तो कोई बात बने
राम सा खुद को बनाओ, तो कोई बात बने
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एक दिन दीप जलाने से भला क्या होगा
रोज दीवाली मनाओ, तो कोई बात बने
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इन बनावट के उसूलों में, धरा ही क्या है
प्यार की आग जगाओ, तो कोई बात बने
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सिर्फ पुतलों के जलाने से, फायदा क्या है
दिल के रावण को जलाओ, तो कोई बात बने
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क्यों खुदा कैद किया, दैर-ओ-हरम में नादां
नूर का ‘रूप’ बसाओ, तो कोई बात बने
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)