मेरा दिल मानो कि गुलाब सा खिल गया
मेरा दिल मानो कि गुलाब सा खिल गया
कमरे में जब तेरा खत पुराना मिल गया
खाली रातें,सूने दिन और बेचैन सी साँसें
तेरी यादें पा कर एक ज़माना मिल गया
वही कहीं तुम्हारे लबों की छुअन भी थी
छुआ तो मेरे होंठों को तराना मिल गया
हर्फों में छिपे तेरे घुँघराले लटों का जादू
किसी शरीफ को पूरा मैखाना मिल गया
तेरे जिस्म की खुशबू अब भी बरकरार है
राहगीर को ज्यों शाम सुहाना मिल गया
तुमसे मिलकर खुद से ही मिल गया हूँ मैं
मेरी तक़दीर को कोई खज़ाना मिल गया
सलिल सरोज 9968638267