ग़ज़ल
फ़िरका परस्तियों की साज़िशों के बावज़ूद
ज़िन्दा है प्यार बढ़ती नफ़रतों के बावज़ूद
रख हौसला मिलेंगी मंज़िलें भी एक दिन
मुश्किल सफ़र तमाम गर्दिशों के बावज़ू्द
सच हारता नही है जानता हूँ मैं, तभी
टूटा नही हूँ इतनी मुश्किलों के बावज़ू्द
हैं साथ आपकी दुआ तभी तो ये चराग
रोशन है गर्दिशों की आँधियों के बावज़ूद
नाकाबिलों ने काबिलों का हक़ चुरा लिया
कैसे, कहो तमाम मानकों के बावज़ूद
सच मानिये खुशी के वास्ते तरस गये
हर दिन हरेक पल के कहकहों के बावज़ूद
अपने सभी खुशी खुशी जियें इसीलिये
मुस्का रहा हूँ दर्द के ग़मों के बावज़ूद
— सतीश बंसल