गज़ल
माँ की दुआ से जीवन कश्ती में बैठा हूँ
कश्ती की किस्मत में अब तूफ़ान कहाँ,
लाखो तूफान “रेखा” जीवन सिंधु में आए
तूफान से निकलना हो था नादान कहाँ,
बेल मछलियाँ हुई पानी के दरमियान
जाल बिछाए बैठे मछेरे लगे हैवान कहाँ,
ऊँची –ऊँची लहरों में ताकत भरे निशान,
इंसानों से दुनिया को कर रहे वीरान कहाँ,
राहें मंजिल दूर रुके ना कदमों के निशान,
हो ना जाना कठिन पथ से बेजान कहाँ,
दूसरों की भटकने से राह पर जो लाए
ऐसे लोग खिंच दुनिया में मेहरवान कहाँ
.रेखा मोहन