लघुकथा -नया रास्ता
अखिलेश प्राईवेट नौकरी में काम अधिक और कम वेतन से बहुत परेशान रहता था|हर समय परिवार में पैसे को लेकर खीछ –खीछ होतीं रहती थी,कभी अखिलेश दुखी होकर नाराज़ होकर आपा खो बैठता था | पत्नी मोना यूँ तो बहुत किफायत से घर चलाती थी पर बच्चों को अच्छें स्कूलों में पढ़ाने के कारण फरमाईशों को सुन मन दुखी हो जाता| पत्नी पति से बोलती,”शाम को कुछ टूयूशन कर लिया करूं,मन भी लगा रहेंगा और कुछ आमदन भी जरूर होगी|” उसनें बच्चों को पढने का काम शुरू कर दिया पर शाम को अखिलेश को अब पत्नी के साथ बाज़ार के काम और सैर को जाना बंद हो गया| अखिलेश बोलता,” मोना !यार ये तो ठीक नहीं सारा काम करो फिर बच्चों को पढाना |अपने बच्चों को देखना तुम्हें थका देख मुझे तुम्हारीं सेहत की चिंता सी होने लगती |”अब घर में ये बात का विषय बन गया| आखिर अखिलेश की पत्नी को कामवाली बिमला की बेटी याद आई जो बी.ऐ कर घर में बैठी थी उसे अपने साथ कुछ पैसों में सहायक तौर पर रख लिया| अब बहुत से बच्चें पढ़ने आने लगे| अखिलेश की पत्नी बिमला को आसान विषय पढ़ाने को देती और खुद जरूरी और मुश्किल पर ध्यान देती|नौकरानी की बेटी बिमला भी खुश होकर कहती,”मुझे भी आपके साथ आमदनी और तजुर्बा का नया राह मिल रहा और जीवन में कुछ नये से आयाम पा जीवन वदलाव महसूस होता है|”
मौलिक और अप्रकाशित.
रेखा मोहन २ /११ /१९