धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

बिहारीपन में रँगी दुनिया

अंग्रेजों द्वारा भारत को पर्वों की भूमि कहा जाना आज भी उतना ही प्रासंगिक है। भारत की आत्मा धर्म पर आधारित है जिसमें नैतिकता, शुचिता और परोपकार भी भावना कूट कूटकर भरी है। हजार वर्षों के विदेशी दमनकारी कुचक्र के बावजूद भी हमारी पावन वसुधा का मूल प्राण अक्षुण्ण है। इतना असर जरूर हुआ है कि विकास के चकाचौध में कुछ पर्व आधुनिकता एवं प्रदर्शन के रंग में रँग गए हैं। होली, दशहरा, दिवाली, लोहड़ी, बिहू, ईद व क्रिसमस साल दर साल आधुनिक पथ पर सरपट दौड़ रहे हैं। इन बहुतायत त्यौहारों की भीड़भाड़ में बिहारी माटी में उपजा छठ पर्व आज भी अपनी पवित्रता पर कायम है।
छठ पर्व जो पवित्र षष्ठी तिथि को सूर्य उपासना पर आधारित है, बहुत प्राचीन एवं वैज्ञानिक है। कई पुराण, रामायण और महाभारत में भी इस पर्व का उल्लेख मिलता है जो कार्तिक शुक्ल पक्ष की तृतीया से लेकर सप्तमी तक पंच दिवसीय सबसे बड़ा हिंदू पर्व है। विज्ञान सिद्ध है  सूर्य में निहित असीम सकारात्मक ऊर्जा जिससे सचराचर क्रियान्वित है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में सूर्य – रश्मियों की प्रवणता का प्रभाव शरीर के लिए अनमोल स्वास्थ्यदायक है। त्वचा सहित शरीर के सकल परमाणु  ज्योतिर्मय हो जाते हैं, ऊर्जा से भर जाते हैं। लालमलाल फूल और फल जो मौसमी होते हैं, का सेवन अत्यन्त लाभप्रद है। नदी या सरोवर में कमर तक जल निमग्न होकर घंटों बिताना योग, भक्ति और एकाग्रता से ओत प्रोत होता है।
यह त्यौहार नारी की पूर्ण श्रद्धा – भक्ति पर केन्द्रित है जिसमें पुरुष की भूमिका सहायक के रूप में होती है। बिना मूर्ति और पांडित्य – कर्मकांड के बिना घरेलू और आसपास की वस्तुओं से इस पर्व को मनाया जाता है। इसमें आर्थिक और जातीय स्तरीकरण परिलक्षित न होकर समानता एवं समरसता का भाव निहित है। बाजारू तामझाम से यह सर्वथा पृथक है। पर्यावरणविदों ने इसको प्रकृति के सर्वथा अनुकूल माना है। मानना भी चाहिए क्योंकि यह प्रकृति के विभिन्न उपादानों के संरक्षण पर आधारित है। नदी-  सरोवरों की सफाई तथा फूल, फल, फसल और अन्यान्य वनस्पतियों की सुरक्षा और संरक्षण पर जोर देता है।
पूर्ण बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की भोजपूरी- मैथिली माटी से सदियों पहले उपजा यह पावन पर्व चहुँओर बढ़ रहा है। इस पर्व पर गाये जाने वाले गीत सूर्य से गुहार का भाव लिए हुए अत्यन्त कर्णप्रिय होते हैं। अब न केवल भारत के समस्त राज्यों में बल्कि वैश्विक स्तर पर इस त्यौहार को मनाया जाने लगा है। आने वाले समय में यह दुनिया का सबसे लोकप्रिय और व्यापक पर्व होने वाला है। सर्वाधिक प्रसन्नता की बात यह है कि इसको मनाने का विधि – विधान सर्वत्र एक जैसा है। अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए न केवल हिंदू बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इसके प्रति नतमस्तक हैं। डूबते और उगते सूर्य की उपासना का यह पर्व दुनिया को बहुत व्यापक और सकारात्मक संदेश देता है। पाँच दिनों के लिए दुनिया अपने राजनीतिक हदों को तोड़कर बिहारीपन में रँग गई है, कहना अतिशयोक्ति न होगा।
— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन