पर्यावरण

मानव द्वारा ‘नीरीह’ और ‘निरपराध’ जीवों की निर्मम हत्या क्यों? शाकाहार अपनायें, सदा स्वस्थ्य रहें।

(इस पृथ्वी के समस्त जानवरों की जातियों की मानव जाति से एक मार्मिक अपील)

इस धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी (चींटी से लेकर ह्वेल तक) अपने बच्चों से असीम, अनन्त प्यार, स्नेह और दुलार करते हैं। उनका पालन-पोषण करते हैं (स्तनधारी जीवों में उनकी माँ अपने-अपने बच्चों को मनुष्यों जैसे दुग्धपान भी कराती है), जानवरों की माँएं भी अपने बच्चों को दुश्मनों से उनकी रक्षा के लिये अपनी जान की बाजी तक लगा देतीं हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि हम मानवों की माँ अपने शिशु को जिस स्नेह,प्यार-दुलार, दुश्मनों से रक्षा सहित वे सभी कार्य अन्य जीवों की मांये भी अपने शिशुओं को करतीं हैं।
अगर हम सभी दुधारू मांओं का दूध जो हम और हमारे बच्चे पीते हैं यह उनके बच्चों के प्रति हम बहुत बड़ा अपराध और अन्याय करते हैं (परम् सत्य यह है कि प्रकृति ने उनकी माँ का दूध उनके बच्चों के लिए ही बनाया है) अगर हम उनका दूध पीते हैं तो दयाभाव उन सभी दूध देने वाली मांओं के प्रति समानरूप से होना चाहिए। अगर गाय को हम आदरसूचक शब्द ‘माता ‘ से संबोधित करते हैं,तो बेचारी बकरी भी हमारी ‘चाची ‘ होनी चाहिए,भैंस भी हमारी ‘ताई ‘होनी चाहिए,ऊँटनी भी हमारी ‘दादी ‘ होनी चाहिए। सभी मांओं के प्रति सम्मानसूचक शब्द तो होने ही चाहिये। उन ‘सभी जीवों ‘ को बचाना भी हमारा पावन कर्तव्य होना चाहिए। आखिर गाय के अतिरिक्त अन्य जीव जैसे बकरी, हिरन, भैंस, ऊँट आदि ने मनुष्य प्रजाति का क्या अहित किया है? तो उनके प्रति इतनी निर्ममता क्यों?
हम मनुष्य प्रजाति क्यों किसी की हत्या करता है? वास्तव में हम अपनी ‘मनुष्यता ‘ की हत्या करते हैं। मानव का शरीर शाकाहार के लिये बना है (यह जीव विज्ञान कहता है), फिर हम निरपराध, अबोध, निरीह जीवों की हत्या अपने खाने के लिए स्वाद के लिये क्यों करते हैं? कितना आश्चर्यजनक है कि मनुष्य को इस पृथ्वी पर आने से लाखों वर्ष पूर्व से ही स्वयं प्रकृति इस पृथ्वी पर सभी जीवों के रहने और खाने के लिए,सब कुछ इंतजाम की हुई है व सब संतुलन बनाये हुये है। तो गाय ही क्यों? सभी जीवों पर रहम करना चाहिए,आखिर इस धरती के अन्य जीवों ने क्या अपराध किया है? सभी की हत्या बन्द होनी ही चाहिए।
सभी जीवों को, जो इस धरती पर जन्म लिये हैं,उन्हें अपना सम्पूर्ण जीवन जीने का जन्मसिद्ध अधिकार है। जैसे स्वयं मनुष्य को है। हम (मनुष्य प्रजाति) शाकाहारी बने, हम शाकाहारी भोजन (जिनकी संख्या लाखों में है) करें। मांसाहारी भोजन स्वयं में बहुत से रोगों की जननी है, यह विज्ञान कहता है,और हम सदा स्वस्थ्य रहें।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]