साधना
मन-चिंतन, मन-बोध से
प्रस्फुटित होता अन्तर्मन
अमृत वेला में
मन वृत्ति निस्तव्ध एकाकार मे लीन होती
तब ध्यान की एकाग्रता
ईश के निराकार अस्तित्व में साकार हो उठती
हजारों सूर्य मण्डल की लालिमा
मस्तिष्क पटल पर
शांत आभा, नव चेतना लिए
जीवन के जन्म मरन से मुक्त
एकाकी पथ पर अग्रसर
महान आत्मा में विलय होती ठहर जाती
एक सुखद आभास लिए
नि:शब्द, शून्य, गम्भीर तब तक
जब तक डोर से डोर जुड़ी है
तार से तार बंधी है
धुन से धुन मिली है।
— शिव सन्याल