कैसी यह आधुनिकता?
आधुनिकता की सौगात,
गुम सज्जनता और सरलता।
दम तोड़ता इंसानियत,
जीवन में बस रिक्तता ही रिक्तता।
समझौते पर टिका रिश्ता,
पल में लड़खड़ा कर गिरता।
भाई-भाई में बैर, बहन भी लगती गैर,
ठगी-ठगी सी माँ की ममता।
बनावटी चेहरे और फीकी हँसी की तह में,
दब कर रह गयी मुस्कान की सुंदरता।
जिस गति से बढ़ी साधन-सुविधा,
उतनी ही बढ़ी है व्यस्तता।
हम दौड़ते-भागते जा रहे हैं,
पर कहाँ ? नहीं पता।
छिन्न -भिन्न ऋजुता का भाव
कैसी यह आधुनिकता?
— रानी कुमारी