कविता

रस

काव्य रचना के तीन अवयव,
रस, छंद और अलंकार।
रस है काव्य की आत्मा,
करता आनंद का संचार।
ग्यारह स्थायी रसों से निखरता,
काव्य का रूप श्रृंगार।
रसभरी, मनोहारी ये काव्य पुष्प,
काव्य-कानन में लाते बहार।
सौन्दर्य व प्रेम से पूर्ण काव्य,
श्रृंगार रस का कहलाये।
रसराज है, रसपति भी यही,
रति भाव इसका मन भाये।
मन को हँसाये, गुदगुदाये जो,
जिसमें कष्ट-क्लेश का अभाव।
यही तो हास्य रस है बन्धु,
हास इसका स्थायी भाव।
रौद्र रस का रूप विकराल,
दिखाता क्रोध का भाव।
करुण रस है दुःख-वेदना से भरी,
शोक है स्थायी भाव।
उत्साह भाव से जो भरी,
वीरों में जोश जगाती।
आगे बढ़ते रहने को उकसाती,
वह काव्य वीर रस की कहलाती।
काव्य जो करती विस्मित,
समेटे स्थायी आश्चर्य भाव।
अद्भुत रस है वही जो,
मन में भर दे अचरज भाव।
घृणित वस्तु,व्यक्ति व घटना को,
देख उठे जो घृणा का विचार।
वीभत्स रस दर्शाते उसे,
भाव जुगुप्सा है आधार।
दु:खद घटना या दृश्य भयानक,
जगाती व्याकुलता का भाव।
भयानक रस दिखाती है,
व्याकुल मन के भय का भाव।
संसार से जब मन वैरागी हो,
तब शांत भाव जगती है।
जिसमें न दुःख हो, न द्वेष हो,
उसी को शांत रस जग कहती है।
बड़ों का छोटों के प्रति,
प्रेम,स्नेह से सरस।
वात्सल्यता का भाव हो जिसमें,
वही होता है वात्सल्य रस।
दर्शाये जो प्रभु की भक्ति,
भाव जिसका देव रति।
वह भक्ति रस कहलाता है,
जिसमें ईश्वर की अनुराग-अनुरक्ति।
— रानी कुमारी

रानी कुमारी

शिक्षा- एम.ए. (इतिहास) सम्प्रति- शिक्षिका अभिरुचि- पढ़ना -पढ़ाना व रचनात्मक लेखन लेखन विधा- कविता, बाल कहानी, लघुकथा लेखन भाषा- हिन्दी निवास- पूर्णियाँ, बिहार।