गीत/नवगीत

बन दुर्गा

बन दुर्गा तुम ख़ुद के लिए
एक नया मार्ग तैयार करो
यातनाएं जो तुम सहती आयी
उसका डटकर तुम विरोध करो
अंदर की ज्वाला को अपने
बाहर निकाल प्रज्वलित करो
जो कभी बुने थे सपने तुमने
ये वक़्त हैं उनको साकार करो
बन दुर्गा तुम ख़ुद के लिए
एक नया मार्ग तैयार करो
अष्टभुजा न होकर भी तुम
सब कार्य पूर्ण एक साथ करो
दिन रात एक करके भी तुम
तिरस्कार का क्यों पात्र बनो
सब के लिए जिया अपना जीवन
ख़ुद के लिए तैयार संसार करो
चुप रहकर बहुत कुछ सहा तुमने
अब आवाज़ को बुलंद करो तुम
बन दुर्गा तुम ख़ुद के लिए
एक नया मार्ग तैयार करो
— आशीष शर्मा “अमृत”

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान