सबब
आईने से नज़र मिला के परखिए तो जरा।
आंख झुकती तो नहीं है ये देखिए तो जरा।
किसी के अश्कों के बहने का तू सबब तो नहीं
झांक के दिल में घड़ी भर को सोचिए तो जरा।
कहीं करता हो कोई इंतजार हसरत से
गुफ़्तगु की लिये उम्मीद गौर करिये जरा।
देखिए हो न रही हो कहीं नाइंसाफी
हो ख़लीश दिल में तो महसूस कीजिए तोे जरा।
खो न जाए कहीं वजूद घुट न जाए दम
इक झरोखा किसी कोने का खोलिए तो जरा।
तीरगी में भले दिखे न मगर ये “स्वाती”
अक्स है तेरा साथ साथ के मुड़िये तो जरा।
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”