ग़ज़ल
प्रेम में डूबना खुमारी है
प्रेम पागल बशर पुजारी है |
जानता हूँ समाज कहते हैं
तेरी तारीफ चाटुकारी है |
मैं किया प्यार बावफा तुझ से
तेरा इंकार बेइमानी है |
जिंदगी में उदास था मैं प्रिय
जीस्त को तू ने ही सँवारी है |
तू है’ तो जिंदगी बहुत धनवान
बिन तेरे जिंदगी भिखारी है |
अक्स माँ, आत्मजा, बहू, पत्नी
है अलग रूप पर सभी नारी है |
देवी’ ‘काली’ नमन तुझे सौ बार
पद कमल का सदा पुजारी है |
कालीपद ‘प्रसाद’