कविता

ऐतिहासिक फैसला

आस्था के दीप से
जगमग अयोध्या नगरी
मनवांछित फल पाए
सज गई पुरूषोत्तम नगरी।
साधु संत और फकीर
के संग करोडो देशवासी
सब के सब है
मर्यादा पुरूषोत्तम के दासी।
उसकी लीला वही जाने
सबको राह दिखाएगा
सबका फैसला वो करे
उसे भला कौन भूला पाएगा।
आज परूषोत्तम को भी
लड़ना पडा
अपना वजूद ढूँढना पडा
अनपढो की वस्ती में
तर्क कुतर्क का पात्र बनना पडा।
एक ही तो सच है
जिसका होता है अंत
चार कांधो पर बैठकर
बोले राम नाम सत्य।
इतना तो पता है
पर मालूम नही वो कहाँ
जीवन के हरचक्र में
जो उपस्थित हो
उसे नकार देना वाजिव कहाँ।
आ गया फैसला
सब सम्मान करें
मंदिर बनने में सभी
अपना अपना योगदान करें।
— आशुतोष    

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)